अंतर्देशीय मात्स्यिकी
परिचय
भारत चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि देश है। भारत में नीली क्रांति ने मात्स्यिकी और जलीय कृषि क्षेत्र के महत्व को प्रदर्शित किया है। इस क्षेत्र को एक उभरता हुआ क्षेत्र माना जाता है और निकट भविष्य में यह भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। हाल के दिनों में, भारतीय मात्स्यिकी ने समुद्री वर्चस्व वाली मात्स्यिकी से मात्स्यिकी की ओर एक बड़ा बदलाव देखा है, जिसमें अंतर्देशीय मात्स्यिकी 1980 के मध्य में 36% से हाल के दिनों में 70% तक मत्स्य उत्पादन में एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में उभरी है। अंतर्देशीय मात्स्यिकी के अंतर्गत, कप्चर से लेकर कल्चर-बेस्ड मात्स्यिकी में बदलाव ने निरंतर नीली अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त किया है।
यद्यपि अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जलीय कृषि में पूर्ण रूप से वृद्धि हुई है, लेकिन इसकी क्षमता के संदर्भ में विकास अभी भी होना बाकी है । 191,024 किलोमीटर लंबी नदियों और नहरों, 1.2 मिलियन हेक्टेयर बाढ़ के मैदानों की झीलों, 2.36 मिलियन हेक्टेयर तालाबों और टैंकों, 3.54 मिलियन हेक्टेयर जलाशयों और 1.24 मिलियन हेक्टेयर खारे पानी के संसाधनों के रूप में अप्रयुक्त और कम उपयोग किए गए विशाल और विविध संसाधन आजीविका विकास और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ उत्पादन बढ़ाने के लिए बेहतरीन अवसर प्रदान करते हैं।
अंतर्देशीय जलकृषि
भारत में मत्स्य उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है, जो 1950-51 के दौरान 7.5 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर वर्तमान में 141 लाख मीट्रिक टन हो गई है।
2000 तक भारत के कुल मत्स्य उत्पादन में समुद्री मत्स्य उत्पादन का वर्चस्व था। हालांकि विज्ञान आधारित मात्स्यिकी के अभ्यास के कारण भारत में अंतर्देशीय मात्स्यिकी में काफी बदलाव आया है और वर्तमान में यह कुल मत्स्य उत्पादन में ~70% का योगदान देता है। इसलिए, पीएमएमएसवाई के तहत अपनाए गए समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से, अंतर्देशीय मात्स्यिकी, मात्स्यिकी के इष्टतम उपयोग, प्रौद्योगिकी संचार और क्षमता निर्माण के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने के लिए अपार अवसर और क्षमता प्रदान करती है।
टैंक और पॉण्ड
भारत में लगभग 2.36 मिलियन हेक्टेयर टैंक और पॉण्ड क्षेत्र है जहाँ कल्चर-बेस्ड मात्स्यिकी प्रमुख है और कुल मत्स्य उत्पादन में अधिकतम हिस्सेदारी का योगदान देता है। टैंक और पॉण्ड से वर्तमान उत्पादन 8.5 मिलियन मीट्रिक टन है। उत्पादन में प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में, विभाग ने 135 लाख मीट्रिक टन उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए टैंकों और पॉण्ड के अंतर्गत क्षैतिज क्षेत्र का विस्तार करने को प्राथमिकता दी है।
भारत में लगभग 2.36 मिलियन हेक्टेयर टैंक और पॉण्ड क्षेत्र है जहाँ कल्चर-बेस्ड मात्स्यिकी प्रमुख है और कुल मत्स्य उत्पादन में अधिकतम हिस्सेदारी का योगदान देता है। टैंक और पॉण्ड से वर्तमान उत्पादन 8.5 मिलियन मीट्रिक टन है। उत्पादन में प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में, विभाग ने 135 लाख मीट्रिक टन उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए टैंकों और पॉण्ड के अंतर्गत क्षैतिज क्षेत्र का विस्तार करने को प्राथमिकता दी है।
यह अनुमान है कि 13.5 मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, 28,390 मिलियन फिंगरलिंग और 202.3 लाख टन फ़ीड की सालाना आवश्यकता होगी। अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की उपलब्धता और पहुंच सुनिश्चित करने के लिए, पीएमएमएसवाई को लागू करने के दौरान, 9 स्वीकृत ब्रूड बैंक स्थापित किए जाएंगे, जबकि देश भर में क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से अधिक इकाइयां स्थापित करने के लिए मूल्यांकन जारी है। इसके अतिरिक्त, मोनोक्रॉपिंग के जोखिम को कम करने के लिए , प्रजातियों के विविधीकरण और कार्प-बेस्ड कल्चर को स्कैम्पी, पंगेसियस , तिलापिया और मुरेल्स आधारित उत्पादन में स्थानांतरित करने को बढ़ावा दिया जा रहा है । विभाग का लक्ष्य नए पालन तालाब, नए ग्रो-आउट पॉण्ड क्षेत्र और मीठे पानी की जलीय कृषि के लिए इनपुट के 8100 हेक्टेयर के विस्तार को प्राप्त करने के लिए आगे की मंजूरी देना है, साथ ही प्रौद्योगिकी के उपयोग और अच्छी जलीय कृषि प्रथाओं को अपनाना भी शामिल है। इस तरह के रणनीतिक निवेश से पीएमएमएसवाई लक्ष्यों के अनुसार कुल उत्पादकता 3 टन/हेक्टेयर से बढ़कर 5 टन/हेक्टेयर हो जाएगी।
खारे और लवणीय जलकृषि
भारत में खारे/लावणीय पानी के जलीय कृषि ने बहुत तेज़ी पकड़ी है। भारत की निर्यात वृद्धि की कहानी मुख्य रूप से झींगा के खारे पानी के जलीय कृषि की सफलता के कारण है। विगत कुछ दशकों में खारे पानी के झींगा जलीय कृषि में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है; खेती की गई झींगा का उत्पादन 1970 में ~20 मीट्रिक टन से बढ़कर 2020 में 7.47 लाख मीट्रिक टन हो गया है, जिससे 46,662 करोड़ रुपये की मात्स्यिकी निर्यात आय में प्रमुख निर्यात हिस्सेदारी का योगदान हुआ है।
खारे पानी की जलीय कृषि में काफी संभावनाएं हैं क्योंकि देश में लगभग 1.42 मिलियन हेक्टेयर खारा/लवण क्षेत्र है, जिसमें से केवल ~13% का ही उपयोग किया जाता है । इसकी क्षमता का दोहन करने के उद्देश्य से, विभाग ने वित्त वर्ष 2024-25 तक वर्तमान मछली उत्पादन 0.7 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़ाकर 1.10 मिलियन मीट्रिक टन करने पर ध्यान केंद्रित किया है। 15 लाख मीट्रिक टन उत्पादन प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ, वित्त वर्ष 2024-25 तक कुल 45 हजार हेक्टेयर खारे पानी के क्षेत्र को शामिल किया जाएगा, जिससे वर्तमान उत्पादकता ~4 टन/हेक्टेयर से बढ़कर 8 टन/हेक्टेयर हो जाएगी। इससे फिनफिश और शेलफिश दोनों की खेती के लिए देश में उपलब्ध 3.9 मिलियन हेक्टेयर मुहाना और 0.5 मिलियन हेक्टेयर तटीय मैंग्रोव क्षेत्रों का उपयोग करना होगा। उच्च ज्वारीय आयाम के कारण, विभाग ने गुजरात और ओडिशा को खारे पानी की जलीय कृषि के लिए उच्च क्षमता वाले राज्यों के रूप में पहचाना है और राज्यों में खारे पानी के जलीय कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। वित्त वर्ष 22-23 में, पीएमएमएसवाई के तहत 109.51 करोड़ रुपए के निवेश से 8 तटीय राज्यों में 1381 हेक्टेयर खारे पानी का क्षेत्र विकसित किया गया है।इसके अतिरिक्त, वित्त वर्ष 2024-25 तक जलकृषि क्षेत्र को 13 हजार हेक्टेयर से बढ़ाकर 58 हजार हेक्टेयर करके 'वेस्ट लैंड टू वेट-लैंड' में बदलने के लिए खारे पानी की जलकृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य वर्तमान वार्षिक उत्पादन 4331 टन को बढ़ाकर 1.04 लाख टन करना है, जबकि वर्तमान उत्पादकता को ~6 टन/हेक्टेयर से बढ़ाकर 8 टन/हेक्टेयर करना है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे उच्च मृदा लवणता वाले राज्यों को इस प्रकार बढ़ावा दिया जा रहा है। वित्त वर्ष 22-23 में, पीएमएमएसवाई के तहत 220.78 करोड़ रुपए के निवेश से 2855.59 हेक्टेयर खारे/क्षारीय क्षेत्र का विकास किया गया है।
वर्तमान में, हरियाणा में 493 हेक्टेयर क्षेत्र में झींगा पालन को बढ़ावा दिया गया है , जिसमें ~3,120 टन उत्पादन और 6.32 टन/हेक्टेयर की औसत उत्पादकता है। उत्पादन और इस प्रकार उत्पादकता बढ़ाने के लिए अधिक खारे पानी से प्रभावित क्षेत्रों को जलीय कृषि के अंतर्गत लाने के लिए हरियाणा और अन्य राज्यों के लिए कार्य योजना तैयार की गई है । आईसीएआर-सीआईबीए के साथ मिलकर, विभाग राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ झींगा, सीप, मसल्स, केकड़े, झींगे, सी बास, ग्रूपर, मुलेट, मिल्क फिश, कोबिया, सिल्वर पोम्पानो की खेती को बढ़ावा देकर खारे पानी की जलीय कृषि में प्रजातियों के विविधीकरण के लिए स्थायी तरीके भी तलाश रहा है।
ठंडे पानी में मात्स्यिकी
बहुमूल्य देशी मत्स्य जननद्रव्य और तापीय व्यवस्थाओं की एक श्रृंखला के साथ मूल जल के साथ विशाल और विविध ठंडे पानी के संसाधन हैं। इसलिए हिमालयी राज्य ठंडे पानी की मात्स्यिकी में एक अद्वितीय मूल्य प्रस्ताव प्रदान करते हैं। इसकी क्षमता का उपयोग करने के उद्देश्य से, विभाग ने वित्त वर्ष 2024-25 तक वर्तमान ठंडे पानी के मत्स्य उत्पादन को 52,084 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 90 हजार मीट्रिक टन करने पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे वर्तमान उत्पादकता ~1 टन/हेक्टेयर से बढ़कर 3 टन/हेक्टेयर हो जाएगी। अनुमान है कि लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, पीएमएमएसवाई के कार्यान्वयन के दौरान 18.6 लाख फिंगरलिंग और 5.16 लाख मीट्रिक टन फ़ीड की आवश्यकता होगी। ठंडे पानी की मात्स्यिकी 40 हजार रोजगार के अवसर पैदा करने में भी सहायक रही है और फोकस राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में जुड़ाव को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है।
इसके अतिरिक्त, सभी हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में ओमेगा-पैक ट्राउट को बढ़ावा देकर ठंडे पानी में मात्स्यिकी को एक विशिष्ट बाजार के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसका लक्ष्य 10 हजार मीट्रिक टन ट्राउट उत्पादन है। वित्त वर्ष 2022-23 में पीएमएमएसवाई के तहत ठंडे पानी में मात्स्यिकी क्षेत्र के विकास के लिए 597.27 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है।
यद्यपि प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र कठिन भूभाग और जलवायु संबंधी चुनौतियों का सामना करता है , फिर भी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण अपनाने, ट्राउट , एक्जोटिक कार्प जैसी उच्च उपज वाली प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करने और मजबूत विपणन संबंध स्थापित करने जैसी रणनीतिक कार्य योजना के माध्यम से प्रगतिशील विकास कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, शीत-जल मत्स्य अनुसंधान निदेशालय (आईसीएआर-डीसीएफआर) से अनुसंधान सहायता के साथ, भीमताल स्थायी शीत-जल मत्स्य उत्पादन, प्रबंधन, संरक्षण और पारिस्थितिकी पर्यटन को अपनाने में सहायक रहा है।
सजावटी मत्स्य पालन
सजावटी मात्स्यिकी में निर्यात की अपार संभावनाएं हैं, यह 125 से अधिक देशों में फैला एक बहु-अरब डॉलर का उद्योग है , जिसका खुदरा व्यापार 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है। सजावटी मात्स्यिकी के क्षेत्र में भारत को अग्रणी बनाने के लिए, विभाग चयनित अंतर्देशीय और समुद्री क्षेत्रों में सजावटी मत्स्य समूहों के निर्माण के माध्यम से इस क्षेत्र के समग्र विकास के लिए प्रयास कर रहा है। इस क्षेत्र को जीवंत और लाभकारी बनाने के लिए विभिन्न मत्स्य उत्पादन इकाइयों की स्थापना के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी को बढ़ावा देने पर भी ध्यान दिया जा रहा है ।
इस योजना ने सहभागितापूर्ण दृष्टिकोण अपनाकर पहले ही ठोस लाभ दर्शाना शुरू कर दिया है। वित्त वर्ष 2022-23 में 189.14 करोड़ रुपये का निवेश पीएमएमएसवाई के तहत सजावटी मात्स्यिकी क्षेत्र के विकास के लिए एक करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है ।
आगे की गति बढ़ाने के लिए, विभाग ने वित्त वर्ष 2024-25 तक समुद्री और मीठे पानी दोनों में ओर्नमेंटल फिश रेयरिंग यूनिट(बैकयार्ड, एकीकृत और मध्यम आकार) की 2,121 इकाइयां और 10 ओर्नमेंटल फिश ब्रूड बैंक, फिश रीटेल मार्केट, फिश कियोस्क स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।
जलाशयों में केज कल्चर
जलाशयों इन्हें आम तौर पर 'स्लीपिंग जाईंट' के रूप में संदर्भित किया जाता है क्योंकि बड़े क्षेत्र में शामिल होने के बावजूद यह कुल अंतर्देशीय मत्स्य उत्पादन का ~3.81% योगदान देता है। इसलिए विभाग का लक्ष्य पीएमएमएसवाई के तहत 3.54 मिलियन हेक्टेयर जलाशयों की क्षमता का उपयोग करना है। छोटे और मध्यम जलाशयों में कल्चर-बेस्ड मात्स्यिकी के माध्यम से उत्पादन को अनुकूलित करने के लिए जलाशयों में केज कल्चर को स्थायी तरीके से बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए गए हैं । इसकी क्षमता का उपयोग करने के उद्देश्य से, विभाग ने 2.44 लाख मीट्रिक टन के केज कल्चर के माध्यम से वर्तमान मत्स्य उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है। वित्त वर्ष 2024-25 तक 6.29 लाख मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य है, जिसके लिए जलाशयों के कम से कम 60% का उपयोग किया जाएगा और सभी प्रकार के केज (छोटे/मध्यम और बड़े) की उत्पादकता को बढ़ाया जाएगा। अनुमान है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सालाना 750 करोड़ फिंगरलिंग की आवश्यकता होगी।
विभाग अच्छे पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन, विपणन संपर्क और अन्य सहायक बुनियादी ढांचे की स्थापना के माध्यम से जलाशयों की क्षमता का दोहन करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने पर ध्यान केंद्रित करेगा। इसके अतिरिक्त, स्टॉकिंग घनत्व, गुणवत्ता वाले चारे, बेहतर रोग प्रबंधन और पंगेसियस , तिलापिया, माइनर /मीडियम/एक्सोटिक कार्प्स के लिए प्रजाति विविधीकरण में वृद्धि करके उच्च मछली उत्पादन प्राप्त किया जा रहा है ।इसके अनुरूप, पीएमएमएसवाई के तहत 1277.53 करोड़ रुपये के निवेश के साथ 20 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 44408 जलाशय केज स्वीकृत किए गए , जिन्हें 543.7 हेक्टेयर के जलाशय पेन कल्चर और बढ़ी हुई स्टॉकिंग के माध्यम से कैप्चर फिशरीज द्वारा पूरक बनाया गया।
पीएमएमएसवाई के कार्यान्वयन के दौरान जलाशयों में केज कल्चर के लिए पीएमएमएसवाई के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के लिए, 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 20 हजार केज स्थापित किए जाएंगे , 72.7 हेक्टेयर में जलाशयों में केज कल्चर और बढ़ी हुई स्टॉकिंग के माध्यम से कप्चर मात्स्यिकीको पूरक बनाया जाएगा।
नदी मात्स्यिकी
भारत में 14 प्रमुख, 44 मध्यम और कई छोटी नदियाँ हैं जो 2.52 लाख किलोमीटर तक बहती हैं और वर्तमान में 1 लाख टन उत्पादन में योगदान देती हैं। नदी मात्स्यिकी की क्षमता का बेहतर उपयोग करने के लिए, विभाग देशी मात्स्यिकी संसाधनों के संरक्षण और रिवर रंचिंग के अभ्यास द्वारा प्राकृतिक उत्पादकता की बहाली पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और 9 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में नीली क्रांति के तहत स्वीकृत 41 नदी मात्स्यिकी संरक्षण और जागरूकता कार्यक्रम ।
देशी प्रजातियों के सीड रेंचिंग द्वारा नदियों में देशी प्रजातियों का उत्पादन, नदी के किनारे लैंडिंग केंद्रों का उन्नयन और मछुआरों की भलाई के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए उपकरणों का लक्ष्य रखा जा रहा है। केंद्रीय क्षेत्र की योजना के तहत पायलट आधारित गतिविधि के रूप में छह राज्यों में दो चरणों में नदी में रिवर रेंचिंग को लागू करने की योजना भी चल रही है। कुल बजट परिव्यय 2.81 करोड़ रुपये है, जिससे 1.40 करोड़ फिंगरलिंग का पालन किया जा सकेगा। पहला चरण सितंबर के अंत तक शुरू हो जाएगा , जबकि दूसरा चरण अक्टूबर में शुरू होगा। मछुआरों की सहायता के लिए, विभाग ने 1,710 करोड़ रुपये के निवेश के साथ निम्नलिखित को मंजूरी दी है ।
अंतर्देशीय राज्यों में पारंपरिक मछुआरों द्वारा सतत मत्स्यन प्रथाओं को अपनाने पर भी समान जोर दिया जाना चाहिए।
प्राकृतिक आर्द्रभूमि
देश की प्राकृतिक आर्द्रभूमियों को सतत मत्स्यन प्रथाओं को बढ़ावा देने के माध्यम से महत्वपूर्ण प्राकृतिक आर्द्रभूमियों की पारिस्थितिक अखंडता को बनाए रखते हुए विकसित किया जा रहा है, जिससे 5.5 लाख हेक्टेयर उपलब्ध क्षेत्र के माध्यम से 2.03 लाख टन के वर्तमान उत्पादन में योगदान मिला है। प्राकृतिक आर्द्रभूमियों की क्षमता का इष्टतम उपयोग करने के लिए, विभाग 5.61 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य बना रहा है। अनुमान है कि उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, सालाना 11 बिलियन फिंगरलिंग और 8.41 लाख टन फ़ीड की आवश्यकता होगी।
बिहार, उत्तर प्रदेश, असम और मणिपुर जैसे राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है तथा उत्पादन बढ़ाने, प्रजातियों के विविधीकरण और प्राकृतिक आर्द्रभूमि और नदियों के बीच संपर्क को अच्छे स्वास्थ्य संकेतक के रूप में बहाल करने के लिए प्रयास जारी हैं।
निष्कर्ष
अंतर्देशीय मात्स्यिकी की क्षमता को कुशल और प्रभावी तरीके से और मजबूत करने और उत्प्रेरित करने के लिए पीएमएमएसवाई के तहत कई अन्य सहायक क्षेत्रों को मजबूत किया जा रहा है जैसे मात्स्यिकी के लिए मत्स्य सेवा केंद्र की स्थापना करना। सेवा केंद्र - मछुआरों और मत्स्य किसानों को उनकी सभी मात्स्यिकी आवश्यकताओं की सेवा के लिए स्थानीय लाभार्थियों द्वारा संचालित वन-स्टॉप शॉप विस्तार केंद्र , जलीय पशु स्वास्थ्य प्रबंधन - बिहार में 2 जलीय रेफरल प्रयोगशालाएं, दिल्ली में 1 रोग निदान प्रयोगशाला और उत्तर प्रदेश में 4 रोग निदान और गुणवत्ता परीक्षण मोबाइल प्रयोगशालाएं, साथ ही कई मत्स्य कियोस्क, आइस प्लांट/कोल्ड स्टोरेज, फिश फ़ीड मिल / संयंत्र, मत्स्य परिवहन सुविधाएं, उद्यम इकाइयां स्वीकृत की गई हैं। इसके अतिरिक्त, राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों, आईसीएआर मात्स्यिकी संस्थानों के सहयोग से एनएफडीबी द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम, विश्व मत्स्य दिवस, मत्स्य महोत्सव आदि जैसी कई सामुदायिक आउटरीच गतिविधियां आयोजित की गई हैं।