समुद्री मात्स्यिकी
परिचय
भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है और 2047 तक इसकी जनसंख्या 1.66 अरब तक पहुँचने का अनुमान है। हालाँकि भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की आकांक्षा रखता है, लेकिन देश के लिए विकास के प्रति सजग दृष्टिकोण रखना ज़रूरी है। खाद्य सुरक्षा आत्मनिर्भरता के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है।
भारत में 2.02 मिलियन वर्ग किलोमीटर का ईईजेड और 8118 किलोमीटर लंबी तटरेखा है, जिसमें अनुमानित वार्षिक क्षमता 5.31 मिलियन मीट्रिक टन कैप्चर फिशरीज है। यद्यपि संसाधनों से कैप्चर फिशरीज 2023-24 में 44.95 लाख टन तक पहुँच गई, तथापि गहरे समुद्र और उच्च समुद्र में मत्स्यन जैसी गतिविधियाँ मात्स्यिकी क्षमता का और अधिक उपयोग करने और समुद्री मत्स्य उत्पादन बढ़ाने के अवसर प्रदान करती हैं। इसलिए, विशेष रूप से उच्च गुणवत्ता वाली टूना और टूना जैसी प्रजातियों के हमारे कैप्चर फिशरीज कार्यों का इष्टतम और स्थायी रूप से विस्तार करना महत्वपूर्ण हो जाता है।
समुद्री मात्स्यिकी की उपलब्धियाँ
समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र ने विगत कुछ दशकों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है, जहाँ उत्पादन 1950-51 के 5.34 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 44.95 लाख टन हो गया है। विभाग ने, कैप्चर फिशरीज की समृद्ध किन्तु सीमित क्षमता को स्वीकार करते हुए, मत्स्य और समुद्री भोजन के माध्यम से पोषण और खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए समुद्री कृषि के विस्तार पर भी ध्यान केंद्रित किया है। यह तटीय जलीय कृषि के मजबूत विकास में परिलक्षित होता है, जहाँ झींगा उत्पादन 2013-14 के 3.22 लाख टन से 270% बढ़कर 2023-24 में लगभग 11.84 लाख टन हो गया, जिसने 2023-24 में 60,523.89 करोड़ रुपए मूल्य के 17.81 लाख टन समुद्री खाद्य निर्यात में प्रमुख योगदान दिया।
विभाग द्वारा पहल
PMMSY के अंतर्गत, डीप सी फिशिंग वेसेल्स के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने और मत्स्यन जहाजों के उन्नयन जैसे कई उपायों के माध्यम से कैप्चर फिशरीज को काफी बढ़ावा मिला है। मत्स्यन जहाजों का एक समान पंजीकरण और लाइसेंसिंग 'ReALCRaft' पोर्टल नामक एक अद्वितीय डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से लागू किया जाता है, जहाँ संबंधित तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा मत्स्यन जहाजों का पंजीकरण मर्चेंट शिपिंग अधिनियम 1958 के अंतर्गत और लाइसेंस समुद्री मत्स्यन विनियमन अधिनियम (MFRAs) के अंतर्गत प्रदान किया जाता है। डेटा को अद्यतन करने और प्रणाली में सटीकता बनाए रखने के लिए मत्स्यन जहाजों का समय-समय पर भौतिक सत्यापन भी किया जाता है।
समुद्री कृषि को बढ़ावा देने के लिए, समुद्री मत्स्यन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सभी तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फिन फिश हैचरी, बाइवाल्व कल्टिवेशन इकाइयों, समुद्री केज, राफ्ट और सी वीड फ़ार्मिंग के लिए मोनोलाइन, खारे पानी के तालाब क्षेत्र के विस्तार जैसी प्रभावशाली परियोजनाएँ शुरू की गई हैं।
35 फिशिंग हार्बर्स और 22 लैंडिंग सेंटर्स की स्थापना के लिए 2965.37 करोड़ रुपए के निवेश के साथ-साथ विपणन, कोल्ड स्टोरेज, ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक्स सुविधाओं के माध्यम से पोस्ट-हार्वेस्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर को भारी प्रोत्साहन मिला है। इसमें वैल्यू चैन को मजबूत करने और मार्केट लिंकेज प्रदान करने हेतु पोस्ट-हार्वेस्ट नुकसान को कम करने हेतु इंसुलेटेड/रेफ्रिजरेटेड वाहन, फिश मार्केट्स और कियोस्क शामिल हैं।
मछली पकड़ने पर प्रतिबंध/लीन की अवधि के दौरान वार्षिक आजीविका और पोषण सहायता प्रदान करके सामाजिक सुरक्षा जाल सुनिश्चित किया जा रहा है, जो 2013-14 में 40,397 परिवारों से बढ़कर 2023-24 में 5.94 लाख मछुआरों के परिवारों तक पहुँच गया है। इसके अतिरिक्त, बीमा कवरेज को 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया गया है और मछुआरों के लिए समूह दुर्घटना बीमा योजना (GAIS) के माध्यम से औसतन 32.16 लाख मछुआरों को प्रदान किया गया है।
वेसेल कम्युनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम
इसका शुभारंभ माननीय प्रधानमंत्री द्वारा 30 अगस्त 2024 को पालघर, महाराष्ट्र में किया गया था। इसका लक्ष्य फिशिंग वेसेल्स पर 1 लाख ट्रांसपोंडर निःशुल्क स्थापित करना है। इससे संभावित मत्स्यन क्षेत्रों की जानकारी प्रदान करने के लिए टू-वे कम्युनिकेशन संभव हो सकेगा। अब तक 15,414 ट्रांसपोंडरों की स्थापना पूरी हो चुकी है, जिससे 1.5 लाख मछुआरे लाभान्वित हुए हैं।
स्थायित्व और पर्यावरणीय पहलुओं से संबंधित पहलों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जिसमें ग्लो-लिटर पहल में भागीदारी, प्रजातियों का संरक्षण, गियर्स में टर्टल एक्सक्लूडर उपकरणों को लागू करना और आर्टिफ़िश्यल रीफ़्स स्थापित करके जैव विविधता में सुधार शामिल हैं। एक ज़िम्मेदार राष्ट्र के रूप में, भारत वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) के वृहद समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (LME) कार्यक्रम का भी सदस्य है, जिनमें से दो, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर, भारत की सीमा से लगते हैं। भारत स्थानीय समुदायों के लिए स्थायी आजीविका को बढ़ावा देते हुए पर्यावरण को लाभ पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रमुख फोकस क्षेत्र
समुद्री मात्स्यिकी को बढ़ावा देने और इस क्षेत्र के समावेशी एवं सतत विकास के लिए, डेटा-आधारित नीति निर्माण हेतु पाँचवीं समुद्री मात्स्यिकी जनगणना और तटीय जल कृषि प्राधिकरण द्वारा नई सिंगल विंडो सिस्टम (NSWS) शुरू की गई है। राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति (2017) की सिफारिशों और शार्क पॉप्युलेशन के सतत एवं प्रभावी प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत समुद्री प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण को प्राथमिकता दी जा रही है। राज्य MFRAs में संशोधन के साथ कछुआ संरक्षण और टर्टल एक्सक्लूडर उपकरणों (टीईडी) की स्थापना भी लागू की गई है। 11 तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 937 आर्टिफ़िश्यल रीफ इकाइयों की स्थापना और सी रेंचिंग द्वारा फिश स्टॉक का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए 680 तटीय गाँवों के 7,000 मछुआरों, अधिकारियों और हितधारकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इसके अतिरिक्त, तमिलनाडु के मंडपम स्थित आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (ICAR-CMFRI) के क्षेत्रीय केंद्र को समुद्री मत्स्य प्रजातियों पर केंद्रित NBCs के लिए नोडल संस्थान घोषित किया गया है। मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मकता और दक्षता बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक क्लस्टर-आधारित विकास दृष्टिकोण अपनाया है। समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र में दो प्रमुख क्लस्टर शुरू किए गए हैं, जिनमें एंड-टू-एंड वैल्यू चैन दृष्टिकोण शामिल है: लक्षद्वीप में समुद्री शैवाल क्लस्टर और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में टूना क्लस्टर।
फिश ट्रांसपोर्टेशन के लिए ड्रोन तकनीक के उपयोग का पता लगाने और अंतर्देशीय मात्स्यिकी की निगरानी एवं प्रबंधन में ड्रोन की क्षमता का पता लगाने, दक्षता और स्थिरता में सुधार लाने के लिए ICAR-CIFRI के साथ एक पायलट परियोजना शुरू की गई है। ड्रोन प्रदर्शन कार्यक्रमों में लगभग 3,000 हितधारकों ने भाग लिया है।
सामूहिकता को बढ़ावा देने तथा मछुआरों और मत्स्य किसानों की बार्गनिंग शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से, तटीय मत्स्य सहकारी समितियों को मजबूत करने और मत्स्य किसान उत्पादक संगठनों (FFPOs) के निर्माण के प्रयास किए जा रहे हैं।
माननीय वित्त मंत्री ने बजट 2025-26 में घोषणा की थी कि लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर विशेष ध्यान देने के साथ अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) और उच्च सागरों से मात्स्यिकी के सतत उपयोग के लिए एक रूपरेखा तैयार की जाएगी, ताकि समुद्री क्षेत्र में विकास के लिए भारतीय EEZ और हाई सी में संभावित समुद्री मत्स्य संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
इसलिए, समुद्री मात्स्यिकी में निवेश और नीतिगत हस्तक्षेप, 2047 तक विकसित भारत के विजन को साकार करने के लिए निजी भागीदारों और अनुसंधान संस्थानों तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ जुड़ाव के माध्यम से विकास को गति देने के लिए तैयार हैं।










