भारत में अंतर्देशीय मात्स्यिकी
परिचय
भारत, चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा जलकृषि देश है। भारत में नीली क्रांति ने मात्स्यिकी और जलकृषि क्षेत्र के महत्व को प्रदर्शित किया है। इस क्षेत्र को एक उभरते हुए क्षेत्र के रूप में माना जाता है और निकट भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। हाल के दिनों में, भारतीय मात्स्यिकी में समुद्री वर्चस्व वाली मात्स्यिकी से अंतर्देशीय मात्स्यिकी की ओर एक प्रतिमान बदलाव देखा गया है, जिसमें 1980 के मध्य में मत्स्य उत्पादन में 36% से पिछले कुछ समय में 70% के योगदान के साथ अन्तर्देशीय मात्स्यिकी ने प्रमुख रूप से योगदान दिया है। अंतर्देशीय मात्स्यिकी में कैप्चर से कल्चर आधारित मात्स्यिकी में बदलाव ने सतत नीली अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त किया है।
हालांकि, अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जलकृषि में पूर्ण रूप से वृद्धि हुई है, लेकिन इसकी क्षमता के संदर्भ में विकास अभी तक महसूस नहीं किया जा सका। 191,024 किमी नदियों और नहरों,1.2 मिलियन हेक्टेयर फ्ल्डप्लेक झीलों, 2.36 मिलियन हेक्टेयर तालाब और टैंकों, 3.5 मिलियन हेक्टेयर जलाशयों एवं 1.2 मिलियन हेक्टेयर खारा पानी संसाधनों के रूप में अप्रयुक्त और कम उपयोग किए गए विस्तृत एवं वृहद संसाधन, आजीविका विकास के साथ आर्थिक संपन्नता को आगे बढ़ाने के साथ अत्यधिक अवसर प्रदान करता है।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना संक्षिप्त में
मात्स्यिकी क्षेत्र के महत्व और संभावना को स्वीकार करते हुए, मात्स्यिकी क्षेत्र का सतत एवं जिम्मेदार विकास के द्वारा नीली क्रांति लाने की दृष्टि से आत्मनिर्भर भारत कोविड-19 राहत पैकेज के तहत मई, 2020 में भारत सरकार ने फ्लैगशिप योजना प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना को अनुमोदित किया।

केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) घटक को निम्नलिखित तीन व्यापक शीर्षों के तहत गैर-लाभार्थी उन्मुख और लाभार्थी उन्मुख उप-घटकों/गतिविधियों में विभाजित किया गया है:

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना द्वारामात्स्यिकी क्षेत्र में अब तक का सबसे अधिक निवेश किया गया है, जिसे वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2024-25 तक पांच वर्षों की अवधि में मात्स्यिकी क्षेत्र में सतत और जिम्मेदार विकास को आगे बढ़ाने के क्रम में सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में, मछुआरों, मछली किसानों और मछली श्रमिकों के सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के साथ कार्यान्वित की जानी है। इस प्रकार, 10 सितंबर, 2020 को प्रधानमंत्री द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की शुरुआत की गई।
मात्स्यिकी क्षेत्र में वृद्धि को समेकित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के प्रयास में, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में वित्त वर्ष 2025 के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, जिसमें अतिरिक्त मत्स्य उत्पादन 70 लाख मीट्रिक टन, जलकृषि उत्पादकता को वर्तमान राष्ट्रीय औसत में 3 टन से 5 टन प्रति हेक्टेयर बढ़ाना,निर्यात को 46,589 करोड़ रु. से 1,00,000 करोड़ रुपये करके दोगुना करना, 55 लाख अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा करना एवं मछुआरों और मछली किसानों की आय को दुगना करना शामिल है।
इस प्रकार, मत्स्यपालन विभाग, उपयुक्त रणनीति, हितधारकों की भागीदारी, सार्वजनिक, निजी एवं समुदाय की भागीदारी, बाजार के सहयोग एवं अनुसंधान विस्तार, संमिलन एवं उनके लिंकेज के द्वारा आजीविका को सुधारने, रोजगार सृजन, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, आर्थिक संपन्नता एवं भलाई के लिए अपने संसाधनों के उत्तरदायी उपयोग तथा मात्स्यिकी एवं जलकृषि संसाधनों को विकसित, प्रबंधन, संरक्षण द्वारा मात्स्यिकी का समग्र विकास करने के लिए प्रतिबद्ध है।
अंतर्देशीय जलीय कृषि
1950-51 के दौरान 0.75 मिलियन मीट्रिक टन से वर्तमान उत्पादन 14.1 मीट्रिक टन की वृद्धि प्रदर्शित करते हुए भारत में मत्स्य उत्पादन की अद्भूत वृद्धि देखी गई।
2020 तक, भारत के कुल मत्स्य उत्पादन में समुद्री मत्स्य उत्पादन की प्रमुखता थी, हालांकि, विज्ञान पर आधारित मात्स्यिकी पद्धति के कारण, भारत में अंतर्देशीय मात्स्यिकी में बदलाव देखा गया एवं यह वर्तमान में कुल मत्स्य उत्पादन का 70% योगदान देता है।
अतः, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत अपनाए गए समग्र दृष्टिकोण के द्वारा मात्स्यिकी, प्रौद्योगिकी इन्फ्यूजन एवं क्षमता निर्माण के अधिकतम उपयोग के द्वारा अन्तर्देशीय मात्स्यिकी में उत्पादन को बढ़ाने के अपार अवसर एवं संभावनाएं हैं।
टैंक और तालाब
भारत में लगभग 2.36 मिलियन हेक्टेयर टैंक और तालाब क्षेत्र हैं जहां कल्चर आधारित मात्स्यिकी प्रमुख है और कुल मत्स्य उत्पादन में अधिकतम हिस्सेदारी का योगदान देता है। टैंकों और तालाबों से वर्तमान में उत्पादन 8.5 मिलियन मीट्रिक टन है। उत्पादन की दिशा में एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में, विभाग ने 13.5 मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य उत्पादन को प्राप्त करने के लिए टैंकों और तालाबों के क्षैतिज क्षेत्र का विस्तार करने को प्राथमिकता दी है।.
इसे देखते हुए, विभाग ने नवीन तकनीकों का लाभ उठाने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए, विभिन्न राज्यों से प्राप्त प्रस्तावों को मंजूरी दी है। तदनुसार, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत कुल परियोजना लागत 36,031.70 लाख रुपये के साथ निम्न मंजूरी प्रदान की गई है:

अनुमान है कि 13.5 मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सालाना 28,390 मिलियन फिंगरलिंग और 202.3 लाख टन फ़ीड की आवश्यकता होगी। अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की उपलब्धता और पहुंच सुनिश्चित करने के लिए, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना को लागू करने के दौरान, 9 स्वीकृत ब्रूड बैंक स्थापित किए जाएंगे, जबकि पूरे देश में क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से अधिक इकाइयों की स्थापना के लिए मूल्यांकन जारी है। इसके अतिरिक्त, मोनोक्रॉपिंग के जोखिम को कम करने के लिए, प्रजाति विविधता एवं कार्प पर आधारित कल्चर को स्कैंपी, पेनगेसियस, तिलापी एवं मुरल पर आधारित उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रत्येक नए पालन तालाब के 8100 हेक्टेयर विस्तार, नए तालाब क्षेत्र एवं प्रौद्योगिकी तकनीक के इंफ्यूजन ने वृद्धि के अनुपूरक द्वारा मीठा पानी जलकृषि के लिए और मंजूरी प्रदान करना विभाग का लक्ष्य है। इस प्रकार का रणनीतिक निवेश प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के लक्ष्य के अनुसार सकल उत्पादन को 3 टन प्रति हेक्टेयर से 5 टन प्रति हेक्टेयर बढ़ायेगा।
खारा एवं लवणीय जलकृषि
भारत में खारा/लवणीय जलकृषि बहुत तेजी से बढ़ रही है। भारत के निर्यात में वृद्धि की सफलता के पीछे प्राथमिक तौर पर खारे पानी जलकृषि श्रिंप है। पिछले कुछ दशकों में खारे पानी श्रिंप जलकृषि में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है; खेती श्रिंप के उत्पादन में, 1970 में 20 मीट्रिक टन से 2020 में 7.47 लाख मीट्रिक टन की वृद्धि हुई है जिसमें, मात्स्यिकी निर्यात आय में 46,662 करोड़ रुपये के निर्यात के बड़े हिस्से के रूप में योगदान किया।
देश में लगभग 1.42 मिलियन हैक्टेयर खारे/लवणीय क्षेत्र है, जिसमें खारा पानी जलकृषि में अपार संभावनाएं हैं, जिसमें से केवल 13%का उपयोग हो रहा है।इस संभावना को संरक्षित करने के उद्देश्य से विभाग,वित्त वर्ष2024-25 में वर्तमान मत्स्य उत्पादन को 0.7 मिलियन मीट्रिक टन से 1.10 मिलियन मीट्रिक टन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। वर्तमान उत्पादकता को 4 टन/हैक्टेयर से 8 टन/हैक्टेयर बढ़ाने के लिए वित्तीय वर्ष 2024-25 तक उत्पादन को 15 लाख मीट्रिक टन तक प्राप्त करने के लक्ष्य के लिए कुल 45 हजार हैक्टेयर खारे पानी क्षेत्र को सम्मिलित किया जाएगा। यह फिन फिश तथा शैल फिश कल्चर दोनों के लिए देश में मुहानों के 3.9 मिलियन हैक्टेयर तथा तटीय मैंग्रोव के 0.5 मिलियन क्षेत्रों के उपयोग को बढ़ावा देगा।उच्च ज्वार की अधिकता के कारण, विभाग ने गुजरात एवं उडीसा की खारा पानी जलकृषि के लिए उच्च संभावित राज्यों के रूप में पहचान की है एवं राज्यों में खारा पानी जलकृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की योजना है।
इसके अतिरिक्त, वित्तीय वर्ष 2024-25 तक व्यर्थ भूमि को आर्द्र-भूमि में परिवर्तित करके जलकृषि क्षेत्रों को 13 हजार हैक्टेयर से 58 हजार हैक्टेयर बढ़ाकर लवणीय पानी जलकृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह, वर्तमान वार्षिक उत्पादन को 4331 टन से 1.04 लाख टन बढ़ाने के लिए जबकि वर्तमान उत्पादकता 6 टन/हे. से 8 टन/हे. तक बढ़ाने के लिए है, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में उच्च लवणीय भूमि है इसलिए इनकों बढ़ावा दिया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में चार अंतर्देशीय राज्यों, जिसमें महाराष्ट्र शामिल है निम्न मंजूर प्रदान करने के लिए 3,024 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया है।

वर्तमान में, औसत उत्पादकता 6.32 प्रति हेक्टेयर के साथ 3120 टन उत्पादन के लिए हरियाणा में 493 हेक्टेयर क्षेत्र में श्रिंप की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। उत्पादन एवं उसके साथ उत्पादकता में वृद्धि के लिए जलकृषि के तहत और ज्यादा लवणीय प्रभावित क्षेत्र को लाने के लिए हरियाणा एवं अन्य राज्यों के लिए कार्य-योजना तैयार की जा रही है। श्रिंप, ओएस्टर, मसल्स, क्रैब, लॉबस्टर, सी-बास, ग्रपर्स, मिलेट्स, मिल्क फिश, कोबिया, सिल्वर पॉपिनों की खेती को बढ़ावा देने के लिए, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान को जोड़कर, राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के साथ विभाग, खारा जल जलकृषि में प्रजातियों के वैवधीकरण के लिए सतत तरीकों की तलाश कर रहा है।
शीत जल मात्स्यिकी
भारत में थर्मल रिजिम के साथ मूल्यवान देशी मत्स्य जर्मप्लाज्म एवं प्राकृतिक जल के साथ वृहद एवं विभिन्न शीत जल के संसाधन उपलब्ध हैं। अतः, हिमालयी राज्य, शीत जल मात्स्यिकी में एक अद्वितीय मूल्य का प्रस्ताव प्रस्तुत करते हैं इसकी संभावनाओं को संरक्षित करने के उद्देश्य से, विभाग ने वर्तमान उत्पादकता को 1 टन/हैक्टेयर से 3 टन/ हैक्टेयर को बढ़ाने के लिए वित्तीय वर्ष 2024-25 तक वर्तमान शीत जल मात्स्यिकी उत्पादन को 52,084 मीट्रिक टन से 90 हजार मीट्रिक टन तक बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है। यह आँकलन किया गया है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के कार्यान्वयन के दौरान 18.6 लाख फिंगरलिंग एवं 5.16 लाख मीट्रिक टन भोजन की आवश्यकता होगी। शीत जल मात्स्यिकी 40 हजार रोजगार के अवसर भी सृजन करने में सहायक होगी तथा फोकस किए गए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में इस जुड़ाव को दुगुना करने का लक्ष्य है।
इसके अतिरिक्त, ट्राउट के 10 हजार मीट्रिक टन उत्पादन के लक्ष्य के साथ सभी हिमालय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में ओमेगा से भरपूर ट्राउट को बढ़ावा देने के लिए उचित बाजार के रूप में शीत जल मात्स्यिकी को बढ़ावा दिया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में 48.46 करोड़ रुपये का निवेश किया गया जिसमें निम्न मंजूरी प्राप्त हुई।

हालांकि, प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में कठिन क्षेत्र एवं जलवायु की चुनौतियाँ हैं, फिर भी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र रणनीतिक कार्य योजना जैसे कलस्टर पर आधारित दृष्टिकोण को अपनाना, उच्च उपज की प्रजातियाँ जैसे ट्राउट परध्यान केंद्रित करना, विदेशी कार्प पर फोकस करना एवं मजबूत विपणन के लिंकों की स्थापना द्वारा उत्तरोतर प्रगति कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, सतत शीत जल मात्स्यिकी उत्पादन को अपनाने, प्रबंधन, संरक्षण एवं पर्यावरणीय-पर्यटन में शीत जल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय, भीमताल के अनुसंधान का सहयोग मिला है।
सजावटी मात्स्यिकी
सजावटी मात्स्यिकी में निर्यात की अपार संभावनाएं हैं, यह खुदरा स्तर पर 10 मिलियन यूएस डालर का व्यापार है जो कि 125 से ज्यादा देशों में फैला हुआ है,कई अरबों का उद्योग है। सजावटी मात्स्यिकी में भारत को अग्रिम पंक्ति में रखने के लिए, विभाग, चुने हुए अंतर्देशीय एवं समुद्री क्षेत्रों में सजावटी मत्स्य कलस्टर बनाकर क्षेत्र के समग्र विकास के लिए प्रयास कर रहा है। क्षेत्र को जीवंत एवं लाभकारी बनाने के लिए विभिन्न मत्स्य उत्पादन इकाइयों की स्थापना के लिए पब्लिक-प्राईवेट भागीदारी को भी बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
भागीदारी दृष्टिकोण अपनाने से योजना में पहले ही मूर्त फायदों का दिखना आरंभ हो गया है। इसी दिशा में वित्तीय वर्ष 20-21 में 15.3 करोड़ रुपये के निवेश के लिए निम्न मंजूरी प्रदान की गई हैः

आगे भी प्रोत्साहन देने के लिए, वित्तीय वर्ष 2024-25 तक विभाग का समुद्री एवं मीठे दोनों पानी में 2,121 सजावटी मत्स्यपालन इकाइयों(बैकयार्ड, एकीकृत एवं मध्यम आकार) ब्रुड बैंक, मछली का खुदरा बाजार एवं मत्स्य कियोस्क की स्थापना का लक्ष्य है।
जलाशयों में केज कल्चर
जलाशयों को सामान्यतः निष्क्रिय संपदा माना जाता है, चूंकि बड़े क्षेत्र को कवर करने के बावजूद, इसका केज कल्चर कुल अंतर्देशीय मत्स्य उत्पादन का 3.81% योगदान देता है। अतः प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 3.54 मिलियन हैक्टेयर के संभावित जलाशयों को सुरक्षित करने का विभाग का लक्ष्य है। छोटे एवं मध्यम जलाशयों में कल्चर पर आधारित मात्स्यिकी के द्वारा उत्पादन को अधिकतम करने के लिए सतत तरीके से जलाशयों में केज कल्चर को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए गए। इसकी संभावना को सुरक्षित करने के उद्देश्य से, सभी प्रकार के पिंजरों (छोटे/मध्यम एवं बड़े) में उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कम से कम 60% जलाशयों को टैप करते हुए वित्तीय वर्ष 2024-25 तककेज कल्चर द्वारा वर्तमान मत्स्य उत्पादन को 2.44 लाख मीट्रिक टन से 6.29 लाख मीट्रिक टन बढ़ाने पर विभाग द्वारा ध्यान केन्द्रित किया गया है। यह आंकलन किया गया है कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए 750 करोड़ फिंगरलिंग की प्रतिवर्ष जरूरत पड़ेगी।
विभाग, अच्छे पोस्ट हार्वेस्ट प्रबंधन की स्थापना, मार्केटिंग लिंकेज एवं अन्य सहयोगी अवसंरचना के द्वारा जलाशयों की संभावना को सुरक्षित करने के लिए एक एकीकृत पहल को अपनाने पर ध्यान केंद्रित करेगा। इसके अतिरिक्त, स्टॉकिंग घनत्व, गुणवत्ता भोजन, बेहतर बीमारी प्रबंधन, एवं पैनगेसियस, तिलैपिया, छोटे/मध्यम/विदेशी क्रॉप्स के विशिष्ट विविधता को बढ़ाकर मछली की उच्च उपज प्राप्त की जा रही है।
इसी दिशा में, वित्तीय वर्ष 2020-21 में 128.76 करोड़ रुपये के निवेश के साथ 12 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में निम्न निवेश किए गए हैं।

जलाशयों में केज कल्चर के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में सुनिश्चित करने के लिए, 22 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 20 हजार केज की स्थापना की जाएगी, पूरक के रूप में 72.7 हेक्टेयर में जलाशय पेन कल्चर एवं स्टॉकिंग में वृद्धि के द्वारा कैप्चर मात्स्यिकी की स्थापना की जाएगी।
तटवर्ती मात्स्यिकी (रिवरराइन फिशरीज)
14 बड़ी, 4 मध्यम एवं विभिन्न छोटी नदियों से भारत समृद्ध है जो कि 2.52 लाख किमी में बहती हैं तथा 1 लाख टन के वर्तमान उत्पादन का योगदान देती है। तटवर्ती मात्स्यिकी की संभावनाओं का अधिकतम संरक्षण करने के लिए रैंचिंग पद्धति एवं राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में नीली क्रांति के तहत मंजूर तटवर्ती राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में नीली क्रांति के तहत मंजूर तटवर्ती मात्स्यिकी कार्यक्रम में 41 संरक्षण तथा जागरुकता के द्वारा विभाग देशी मात्स्यिकी संसाधनों एवं प्राकृतिक उत्पादकता की पुनःस्थापना पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
स्थानीय भंडार का बीज पालन, रिवरराइन उतराई केंद्रों का अपग्रेडेशन एवं मछुआरों की भलाई के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए उपकरणों के द्वारा नदियों में स्थानीय प्रजातियों के उत्पादन का लक्ष्य दिया जा रहा है। 140 करोड़ फिंगरलिंग के पालन के लिए 2.81 करोड़ के कुल बजट व्यय के साथ दो चरणों में 6 राज्यों में केंद्रीय क्षेत्र की योजना के तहत पायलेट आधार पर रिवर रैंचिंग को कार्यान्वित करने की योजना भी चल रही है। प्रथम चरण की शुरुआत सितंबर के अंत तक की जाएगी जबकि दूसरे चरण का आरंभ अक्टूबर में किया जाएगा। मछुआरों को सहयोग करने के लिए 1,710 करोड़ रुपये के निवेश के साथ विभाग ने निम्न मंजूरी दी हैः

अतः इस बात का ध्यान देना आवश्यक है कि, इन प्राकृतिक संसाधनों के द्वारा उत्पादन बढ़ाने पर ज्यादा फोकस करने के साथ अंतर्देशीय मात्स्यिकी में पारंपरिक मछुआरों द्वारा सतत मत्स्यन पद्धतियों को अपनाने पर भी समान रूप से जोर देने की आवश्यकता है।
प्राकृतिक आर्द्र भूमि
सतत मत्स्यन की पद्धति को बढ़ावा देने के साथ महत्वपूर्ण प्राकृतिक आर्द्रभूमि की पारिस्थितिकी एकता को ध्यान में रखते हुए देश की प्राकृतिक आर्द्रभूमि को विकसित किया जा रहा है जिसमें 5.5 लाख हेक्टेयर के उपलब्ध क्षेत्र के द्वारा 2.03 लाख टन के वर्तमान उत्पादन का योगदान दिया जा रहा है। प्राकृतिक आर्द्रभूमि की संभावना को अधिकतम संरक्षित करने के लिए, विभाग का 5.61 लाख टन के उत्पादन का लक्ष्य है। यह आंकलन किया गया है कि उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 11 बिलियन फिंगरलिंग एवं 8.41 लाख टन चारा की वार्षिक रूप से आवश्यकता होगी।
बिहार, उत्तर प्रदेश, असम एवं मणिपुर जैसे राज्यों में फोकस किया जा रहा है, तथा उत्पादन में वृद्धि, प्रजातियों की विविधीकरण के प्रयास किए जा रहे हैं तथा यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि प्राकृतिक आर्द्र भूमि एवं नदियों के अच्छे स्वास्थ्य सूचक को पुनः स्थापित किया जा सके।
निष्कर्षः-
अन्तर्देशीय मात्स्यिकी की संभावना को दक्ष एवं प्रभावकारी तरीके से और मजबूत और तेजी से आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत कई सहयोगी क्षेत्रों जैसे मत्स्य सेवा केंद्रों की स्थापना – मछुआरों एवं मत्स्य किसानों की मात्स्यिकी की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्थानीय लाभार्थियों द्वारा चलाई जा रही वन-स्टॉप शॉप विस्तार केंद्र, जलीय पशु स्वास्थ्य प्रबंधन – बिहार में 2 जलीय रिफरल प्रयोगशाला, दिल्ली में 1 रोग निदान प्रयोगशालाएवं कई मत्स्य कियोस्क, आईस प्लांट/कोल्ड स्टोरेज, मत्स्य चारा मिल/संयंत्र, मत्स्य परिवहन सुविधा, इंटरप्राइज इकाइयों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में 4 रोग निदान एवं गुणवत्ता जाँच के लिए चल प्रयोगशालाओं की मंजूरी दी गई है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड द्वारा राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मात्स्यिकी संस्थानों के सहयोग से कई कम्यूनिटी आउटरीच कार्यकलाप जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रम, विश्व मात्स्यिकी दिवस, मत्स्य त्यौहार इत्यादि आयोजित किए जा रहे हैं।