अंतर्देशीय मात्स्यिकी
परिचय
अंतर्देशीय मात्स्यिकी देश के मात्स्यिकी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है और लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है। भारत, विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश होने के नाते, अपने अंतर्देशीय संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। भारत में विशाल और विविध अंतर्देशीय मात्स्यिकी संसाधन हैं, जिनमें 0.28 मिलियन किमी नदियाँ और नहरें, 1.2 मिलियन हेक्टेयर बाढ़ के मैदानी झीलें, 2.45 मिलियन हेक्टेयर तालाब और टैंक और 3.15 मिलियन हेक्टेयर जलाशय शामिल हैं। ये संसाधन देश के मात्स्यिकी क्षेत्र की रीढ़ हैं, जिससे भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि उत्पादक बन गया है।
अंतर्देशीय मात्स्यिकी की विकास गाथा
अंतर्देशीय मात्स्यिकी क्षेत्र ने विगत दशकों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है, जिसका उत्पादन 1950-51 में 7.5 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 139 लाख टन हो गया है। इस परिवर्तन ने अंतर्देशीय मात्स्यिकी को भारत के कुल मत्स्य उत्पादन में प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में स्थापित कर दिया है, जो अब कुल उत्पादन का 75% से अधिक है। हाल के वर्षों में इस क्षेत्र ने विशेष गतिशीलता दिखाई है, जहाँ अंतर्देशीय मत्स्य उत्पादन 2013-14 के 61 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 8.58% की प्रभावशाली चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ 139 लाख टन हो गया है
विभाग द्वािा पहल
विभाग, लवणीय-क्षारीय क्षेत्रों को उत्पादक जलकृषि क्षेत्रों में परिवर्तित करने जैसे नवीन उपायों के माध्यम से और अधिक क्षेत्र को जलकृषि के अंतर्गत ला रहा है। "बंजर भूमि को संपदा में बदलने" के लिए 3,159 हेक्टेयर भूमि को पहले ही विकास हेतु स्वीकृत किया जा चुका है। इन पहलों को विस्तार केंद्रों के रूप में मत्स्य सेवा केंद्रों की स्थापना और फीड मिलों, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं, प्रसंस्करण इकाइयों, ट्रांसपोर्टेशन सुविधाओं, मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि की स्थापना में सहायता के माध्यम से एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण द्वारा पूरक बनाया जा रहा है, जो किसानों की आय में वृद्धि करते हुए राज्यों को मत्स्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
मुख्य फोकस क्षेत्र:
विभाग ने इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मकता और दक्षता बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक क्लस्टर-आधारित विकास दृष्टिकोण अपनाया है। अंतर्देशीय मात्स्यिकी क्षेत्र में तीन प्रमुख क्लस्टर शुरू किए गए हैं, जिनमें एंड-टू-एंड वैल्यू चैन दृष्टिकोण शामिल है: झारखंड के हजारीबाग में पर्ल क्लस्टर; तमिलनाडु के मदुरै में ओर्नमेंटल फिशरीज़ क्लस्टर; और सिक्किम के सोरेंग में ओर्गनिक फिशरीज़ क्लस्टर। इन क्लस्टरों का उद्देश्य फिशरीज़ वैल्यू चैन में महत्वपूर्ण कमियों को दूर करना, क्षेत्र की क्षमता और निजी क्षेत्र की भागीदारी को अधिकतम करना है। हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों में इसकी अपार संभावनाओं को देखते हुए, कोल्ड वॉटर फिशरीज़ विकास एक अन्य प्राथमिकता वाला क्षेत्र है।
रेनबो ट्राउट और महाशीर जैसी प्रजातियों को बढ़ावा दिया जा रहा है, और विशिष्ट बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए PMMSY के अंतर्गत 3,600 हेक्टेयर से अधिक नए तालाबों और 5772 रेसवे और ट्राउट हैचरी को मंजूरी दी गई है। अंतर्देशीय मात्स्यिकी क्षेत्र से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए, विभाग वैल्यू एडिशन और स्टोरेज की सुविधाएँ बढ़ा रहा है। इसमें प्रसंस्कृत उत्पादों को बढ़ावा देना, एकीकृत जल पार्क स्थापित करना और एक मजबूत कोल्ड चैन इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करना शामिल है। इस संबंध में, विभाग ने 682.59 करोड़ रुपए की कुल परियोजना लागत से 11 एकीकृत जल पार्कों के विकास को मंजूरी दी है।
क्लस्टर विकास, प्रजाति विविधीकरण और वैल्यू एडिशन को मिलाकर विभाग का बहुआयामी दृष्टिकोण भारत के अंतर्देशीय मात्स्यिकी क्षेत्र की पूरी क्षमता को उजागर करने के लिए तैयार है।










